गोत्र प्रवर क्या होता है

गोत्र प्रवर

गोत्र प्रवर क्या होता है ? गोत्र क्या होती है ? प्रवर किसे कहते है ? आईए आगे इसे विस्तार से जानते है |

भारतीय आर्य प्रजा अपनी वंश शुद्धि को अक्षुण्ण रखने हेतु आदिकाल से पूर्ण सजक व सतर्क रही है | उन्होंने अपनी वंश शुद्धि को स्थिरता प्रदान करने हेतु अनेक बंधनों का निर्माण किया जिससे की कोइ हीनाचारी पुरुष उसे छल कर उसकी कुलीनता को क्षति नहीं पहुँचा सके | गोत्रों की परंपरा भी उन बंधनों मे से एक है |

The Indian Aryan people have been fully alert and alert since ancient times to keep the purity of their lineage intact. To provide stability to the purity of his lineage, he created many bonds so that no unscrupulous man could deceive him and harm his nobility. The tradition of clans is also one of those bonds.

गोत्रों की मान्यता के प्रति कितनी हि जनश्रुतिया प्रचलित है किन्तु उनका कोइ ऐतिहासिक विश्वस्त आधार अब तक प्राप्त नहीं हो पाया | प्राचीन ग्रंथों मे यद्यपि गोत्रों के संबंध मे कुछ लिखा मिलता है | किन्तु जिन गोत्रों का नामोल्लेख पाया जाता है, वे गोत्र वर्तमान समाज मे नाममात्र पाए जाते है | अतएव प्रमाणों के अभाव मे जों कुछ साहित्य इस संबंध मे प्राप्त होता है, उसी को आधार मानकर संतोष करना पड़ता है |

अमरकोश मे गोत्र शब्द का अर्थ इन शब्दों मे दिया है –

संतति गोत्रय, जनमम् कुलम् अभीजन:

अन्वय: वंश: अन्ववाय, संतान 

There are many popular rumors regarding the recognition of gotras, but no historical reliable basis for them has been found till now. Although something is written in ancient texts regarding gotras. But the gotras whose names are found are found only nominally in the present society. Therefore, in the absence of evidence, we have to be satisfied with whatever literature is available in this regard.

In Amarkosh, the meaning of the word Gotra is given in these words –

Santati Gotraya, Janmam Kulam Abhijan:

Anvaya: Vansh: Anvavaya, progeny 

इन शब्दों को देखने से ज्ञात होता है | की जिस नाम या विशेषण से किसी वंश का परिचय या सूचना प्राप्त हो | या जिस शब्द के संबंध से किसी वंश परंपरा या समूह के कुल विशेष परिचय सूचित होता है, वह शब्द गोत्र कहलाता है | अत: गोत्रों की मान्यता मे निम्न कारण का या दृष्टिकोण सहायक हुए प्रतीत होते है –

  • किसी भी व्यक्ति के वंश का विस्तार होने पर उसकी पहचान हेतु – जिससे यह ज्ञात होता रहे की हम अमुक व्यक्ति की संतान परंपरा से संबंधित है |
  • एक निवास स्थल का परित्याग कर दूसरे स्थान पर निवास करने पर उस परित्यक्त स्थान की स्मृति को ताजा बनाए रखने हेतु |
  • किसी धार्मिक, परोपकारी अथवा प्रभावक पुरुष की कीर्ति अमर रखने हेतु |
  • कोइ महत्वपूर्ण धार्मिक, सामाजिक, लौकिक या लोकोत्तर जन – कल्याणकारी कार्य करने पर उसकी स्मृति को चीर जीवित रखने हेतु |
  • किसी व्यापार या धंधे के नाम पर |

It is known by looking at these words. The name or adjective from which information or information about any lineage is obtained. Or the word which indicates the special identity of any lineage, tradition or group, that word is called Gotra. Therefore, the following reasons or viewpoints seem to be helpful in the recognition of gotras –

  • When any person’s lineage expands, to identify him – so that it remains known that we are related to the lineage of descendants of a particular person.
  • To keep the memory of that abandoned place fresh when one leaves one place of residence and resides at another place.
  • To immortalize the fame of a religious, philanthropic or influential person.
  • To keep alive the memory of any important religious, social, worldly or extraterrestrial public welfare work done.
  • In the name of any business or profession.

गोत्र प्रवर निर्णय :-

ऐसे तो आर्य शस्त्रों मे चारों वर्णों के लिए गोत्र का विधान आया है परंतु द्विजों के लिए हि गोत्र आवश्यक है, क्योंकि आर्य शास्त्रों मे ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के लिए श्रोत, स्मार्त, कर्मों का व्यवहार बताया गया है | इसलिए द्विज मात्र मे अपने गोत्र का साथ प्रवर (1-2-3 और 5 ) का व्यवहार है क्योंकि शास्त्रकारों ने सगोत्री को कन्या देना वर्जित किया है | गौतम ने लिखा है की जिसके प्रवर एक हो, उसके कुल मे ब्याह संबंध नहीं करना चाहिए | इन सब विषयों मे अड़चन पड़ने का कारण द्विजों को परंपरा से अपने – अपने गोत्र के साथ प्रवरों को जानना आवश्यक है |

Similarly, in the Arya Shastras, there is a provision of Gotra for the four varnas, but only Gotra is necessary for the Dwijas, because in the Arya Shastras, sources, intelligence and behavior of deeds have been described for Brahmins, Kshatriyas and Vaishyas. Therefore, in Dwija people, the behavior of their Gotra (1-2-3 and 5) is preferred because the scripture writers have prohibited giving a girl to a Gotri. Gautam has written that one should not have marriage relations in the family of one who has only one family. The reason for facing hurdles in all these matters is that it is necessary for the Dwijas to know the Pravaras along with their respective Gotras by tradition.

गोत्र प्रवर मे शंका का कारण The reason for doubt is Gotra Pravar:

शंका का कारण गोत्र जान लेने पर प्रवर का होता है क्योंकि किसी द्विज का यदि काश्यप गोत्र है और विवाह करने के लिए काश्यप गोत्र वाले से संबंध करना है तो यँहा भेद जानने वाला प्रवर हि होता है | जैसे एक काश्यप गोत्र वाले को 3 प्रवर है तो दूसरे को 5 है तो संबंध आवश्यक है | यदि दोनों के तीन हि तीन या पाँच हि पाँच प्रवर पाए जाते है तो संबंध नहीं करना चाहिए | इसलिए गोत्र प्रवर का ज्ञान आवश्यक है |

The reason for doubt is Pravar after knowing the Gotra because if a Dwija has Kashyap Gotra and has to have a relationship with someone having Kashyap Gotra for marriage, then it is Pravar who knows the difference. For example, one Kashyap Gotra person has 3 Pravaras and the other has 5, so relationship is necessary. If both of them are found to have three out of three or five out of five, then they should not have a relationship. Therefore knowledge of Gotra Pravara is necessary.

गोत्र से प्राय: Regarding Gotra:

गोत्र के विषय मे प्राय: लोग यह समझते है की जिन – जिन ऋषियों से जिस – जिस वर्ण की उत्पत्ति हुई, उस उस वर्ण का वह वह गोत्र उन -उन ऋषियों के नाम से प्रसिद्ध है | शास्त्रानुसार यह बात ब्राह्मणों के लिए तो ठीक है परंतु क्षत्रिय और वैश्यों के लिए ठीक नहीं है जैसा की शास्त्रों मे लिखा है |

जमदग्नि, भारद्वाज, विश्वामित्र, अत्रि, गौतम, वशिष्ठ और अगस्त्य ये ऋषिगण गोत्र के प्रवर्तक है | इन मुनियों के नाम और उनके पुत्र, पौत्र प्रभृति के नाम से हि गोत्र प्रसिद्ध है |

Regarding Gotra, people generally understand that the Gotra from which Rishis originated, that Gotra of that Varna is famous by the name of those Rishis. According to the scriptures, this is right for Brahmins but not right for Kshatriyas and Vaishyas as it is written in the scriptures.

Jamadagni, Bhardwaj, Vishwamitra, Atri, Gautam, Vashishtha and Agastya are the originators of the sage gotra. This Gotra is famous by the names of these sages and the names of their son and grandson Prabhruti.

प्रवर से प्राय: Regarding pravar:

‘प्रवर’ शब्द का अर्थ माधवाचार्य ने इस प्रकार किया है की गोत्र प्रवर्तक ऋषियों का परस्पर भेद उत्पादन करने वाले ऋषियों के नाम प्रवर है – जैसे काश्यप, दो भिन्न – भिन्न व्यक्तियों और दो भिन्न – भिन्न गोत्रों के प्रवर्तक है | सुतरां, दोनों हि गोत्र काश्यप के नाम से प्रसिद्ध है, किन्तु एक भेद जतलाने वाला प्रवर हि है, क्योंकि एक काश्यप गोत्री के तीन और दूसरे के पाँच प्रवर है |

Madhvacharya has explained the meaning of the word ‘Pravara’ in such a way that the names of the sages who differentiate between the gotra originator sages are Pravara – like Kashyap is the originator of two different persons and two different gotras. In the sutras, both the Gotras are famous by the name of Kashyap, but there is only one Pravara to show the difference, because one Kashyap Gotra has three Pravaras and the other has five Pravaras.

‘जामदग्नीर्भरदवाजों विश्वामित्रों त्रिगौतमों | वशिष्ट कास्यपागस्त्यौ मुनयौ गोत्रकारिण:’ ||

‘इतिस्मृते गोत्राणि तन्नामक गोत्र भागीति | वंशपरंपरा प्रसिद्ध पुरुषं ब्राह्मणरूपं गोत्रम | तेन काश्यपं गोत्र यस्य स काश्यप गोत्र: | प्रवरस्तु गोत्र प्रवर्तकस्य मुनेवर्यवितर्को मुनिवत इति माधवाचार्य: | एवं यद्यपि राजन्य – विशंप्रतिस्विकगोत्राभानात् प्रवराभाव: | यथापित पुरोहित गोत्रप्रवरो वेदितव्यौ तथा च यजमानस्यार्षेयान् प्रवृणीते || तयुक्त्वा पौरोहित्यात राजन्यविशं प्रवृणीते आश्वलायन: | इतिमिताक्षरा | अतएव असमनार्षगोत्रजानिभि: ब्राह्मणादिवर्णत्रय विषयमिति संबंध विवेक:’|

‘Jamdagnirbharadwajas Vishwamitras Trigautams. Vashishtha Kasyapagastyou Munayou Gotrakarin:’ ||

‘Itismrite gotrani tannamak gotra bhagiti. Lineage, tradition, famous man, Brahmin form, Gotram. Ten Kashyapan Gotra Yasya Sa Kashyap Gotra: | Pravarastu Gotra Pravartakasya Munevaryavitarko Munivat Iti Madhvacharya: | And although Rajanya – Vishampratisvikgotrabhaanat pravarabhavah. Yathapit purohit gotrapravaro veditavyau tatha cha yajmanasyaarsheyaan pravrinite || Tayuktva Purohityat Rajanyavisham Pravrinite Ashwalayan: Itimitakshara Therefore Asmanarshgotrajanibhi: Brahmanadivarnatraya Vishyamaiti Sambandh Vivek:’|

गोत्र प्रवर Gotra Pravar :

गोत्र और प्रवर की जैसी परिभाषा की गई है, इससे यद्यपि क्षत्रिय और वैश्यों को अपने – अपने गोत्र का अभाव होने से प्रवर का भी अभाव सिद्ध होता है| परंतु तो भी क्षत्रिय और वैश्यों को अपने – अपने पैतृक पुरोहितों के गोत्र और प्रवर के अनुसार अपना – अपना गोत्र प्रवर समझना चाहिए | आश्वलायन सूत्र मे यह बाट काही गई है | जैसे यज्ञादि कार्यो मे यजमानों को गोत्र प्रवर का प्रयोग करना चाहिए | इस भांति परस्पर क्षत्रिय और वैश्यों के यज्ञादि कार्यों मे भी उनके पुरोहित संबंध गोत्र और प्रवर का उपयोग करे |

The way Gotra and Pravara have been defined, this proves that even though Kshatriyas and Vaishyas lack their respective Gotras, they also lack Pravara. But still, Kshatriyas and Vaishyas should consider their respective Gotra Pravara according to the Gotra and Pravara of their respective ancestral priests. This is stated in the Ashvalayan Sutra. For example, in sacrificial functions, the hosts should use Gotra Pravara. Similarly, in the yagya activities between Kshatriyas and Vaishyas, their priestly relations should use Gotra and Pravara.

निष्कर्ष Conclusion:

अत: संबंधविवेककार ने कहा है की समाज गोत्र और समान प्रवर उत्पन्न कन्या के साथ विवाह ने करे | सो ब्राहमण, क्षत्रिय और वैश्यों के लिए हि यह नियम है न की शूद्रों के लिए | बहुधा ऐसे देखने मे आता है की किसी – किसी वंश के क्षत्रियों के पुरोहितों के गोत्र के अनुसार अपना गोत्र भी बदल गया है | लेकिन प्रवर का बोध प्राय: उनको नहीं रहता है | इसलिए यँहा पर गोत्र प्रवर प्रदर्शक चक्र देना अवश्य समझा है की क्षत्रिय बंधु वर्ग इसे देखकर लाभ उठाएंगे |

Therefore, the relationship expert has said that one should marry a girl born in the same caste and community. So this rule is only for Brahmins, Kshatriyas and Vaishyas and not for Shudras. It is often seen that according to the gotra of the priests of some Kshatriya lineage, their gotra has also changed. But they generally do not have the awareness of Pravara. Therefore, it is definitely understood that the Gotra Pravara Pradarshak Chakra should be given here so that the Kshatriya brothers will benefit by seeing it.

गोत्र प्रवर प्रदर्शन चक्र

गोत्र ऋषि प्रवर ऋषि
काश्यप काश्यप, अवत्सार, नैधुव |
भारद्वाज भारद्वाज, वर्हीस्पत्य, अंगिरस |
अगस्त्य अगस्त्य, दर्धीय, जैमिनी |
गौतम गौतम, वशिष्ट, वर्हीस्पत्य |
शुनक शुनक, शौनक, गृहस्मत |
कात्यापन अत्री, भृगु, वशिष्ट |
वशिष्ट वशिष्ट, अत्री, सांकृति |
अत्री अत्री, आत्रेय, शातातप |
शाण्डिल्य शाण्डिल्य, असिल, देवल |
जामदगन्य जामदगन्य, औव्र्य, वशिष्ट |
विश्वामित्र विश्वामित्र, मरीचि, कौशिक |
अंगिरस अंगिरस, वशिष्ट, बार्हस्पत्य |
कौशिक कौशिक, अत्री, जामदग्नि |
वासुकि अक्षोंत्रय, अनंत, वासुकिराज |
कांचन अश्वस्थ, देवल, देवराज |
सांकृति सांकृति, अत्री, अव्याहार |
अनाबुकाक्ष गाग्र्य, गौतम, वशिष्ट |
सौंकालीन सौंकालीन, अंगिरस, बार्हस्पत्य |
कौण्डिन्य कौण्डिन्य, स्तिमिक, कौल |
कृष्णात्रेय कृष्णात्रेय, आत्रे, व्यास |
आत्रेय आत्रेय, शातातप, सांख्य |
सावण्र्य औच्र्य, च्यवन, भार्गव, जामदग्न्य |
पराशर पराशर, शक्ति, वशिष्ट |
बृहस्पति बृहस्पति, कपि, पव्र्वण |
विष्णु विष्णु, वृद्धि, कौरव |
कुशिक कुशिक, कौशिक, विश्वामित्र |
गर्ग गाग्र्य, कौस्तुम, शाण्डिल्य
वृद्धि कुरु, अंगिरस, बार्हस्पत्य |
अव्य अव्य, वलि, सारस्वत |
जैमिनी जैमिनी, उतथ्य, सांकृति |
काण्व काण्व, अश्वस्थ, देवल |
आलव्यायन आलव्यायन ,शालंकायन, घृत कौशिक |
घृत कौशिक घृत कौशिक, कुशीश, कौशिक |
काण्वायन काण्वायन, अंगिरस, बार्हस्पत्य, भारद्वाज |
वैयार्धापह्य सांकृति |

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