राजवंशों का वर्णन
राजवंशों का वर्णन मैत्र्युपनिषद प्रपाठक 1 से 4 मे उल्लिखित प्रमाणों से सिद्ध है की सृष्टि के आदि से लेकर महाभारत काल पर्यन्त क्षत्रियवंश के हि चक्रवर्ती राजे हुए है | क्योंकी स्वयं परमेश्वर ने ही इस पृथ्वी को पावन बनाए रखने के निमित्त क्षत्रिय वंशोद्भव इक्ष्वाकु नामक अश्वत्थवृक्ष रूपी राजा को सत्ययुग मे प्रथम बार आरोपित किया था | उस राजा की दो शाखाएँ सूर्यवंश और चंद्रवंश हुई | इन्ही दो वंशों की धारावाहिक संताने परंपरा से चारों युगों से इस पृथ्वी पर राज्यधिकारी होती आई |
इन दोनों वंशों के राजाओ मे महत्तम धर्म व तपोबल के प्रभाव से किन्ही किन्ही महाराजाओ ने सप्तदीप पृथ्वी का शासन किया, बहुतो ने महत्तर धर्म तपस्या के बल और प्रताप से केवल जम्मूदीप का हि राज्य किया और किन्ही किन्ही महाधर्म, तप, बल और प्रताप से भारतवर्ष मात्र पर अधिकार किया था | इन दो वंशों मे कोई कोई चक्रवर्ती हुए, कोई कोई मंडलेश्वर हुए जिनका विस्तार से वर्णन पुराणों और इतिहास मे किया गया है |
Description of raajvansh
It is proved from the evidence mentioned in Maitryupanishad Prapathak 1 to 4 that from the beginning of creation till the Mahabharata period, only Chakravarti kings of Kshatriya dynasty have been there. Because in order to keep this earth pure, God himself had installed a king in the form of an Ashwattha tree named Ikshvaku of Kshatriya lineage for the first time in Satyayuga. That king had two branches, Suryavansh and Chandravansh. Through the tradition of serial progeny of these two dynasties, they have been ruling this earth for all four ages.
Among the kings of these two dynasties, some kings ruled the Saptadeep Earth with the influence of great religion and power of penance, many of them ruled the Saptadeep Earth with the power of great religion, penance and greatness. Since then, he ruled only Jammudeep and by some great religion, penance, strength and majesty, he had taken control over India only. In these two dynasties, some were Chakravarti, some were Mandaleshwar, who have been described in detail in the Puranas and Itihasas.
राजवंशों का वर्णन (सूर्यवंश)
शास्त्ररूप समुद्र मंथन करने से यह सिद्ध होता है की प्राचीन समय मे दो ही महाप्रतापी राजवंश राज्य करते थे | इन्ही दो राजवंशों का नाम सूर्यवंश व चंद्रवंश, रामायण, महाभारत एवं पुराण आदि मे है और इन्ही सूर्यवंशियों, चंद्रवंशियों के नाम से हि इनको प्रसिद्धि भी मिली थी | आज इनको स्थूल दृष्टि से देखने से पता चलता है की रामायण, महाभारत आदि मे जों सूर्यवंश व चंद्रवंश का शृंखलाबद्ध कुर्सीनामा है, उसमे भ्रम होता है की वह वंशावली परस्पर विरुद्ध है | जैसे किसी पुराण मे पुरुरवा के पाँच पुत्र है, किसी मे इनके आठ पुत्रों का वर्णन और किसी मे सात का विवरण है |
पुराणों के अनुसार स्वायम्भुवमनु से लेकर चाक्षुण तक छ: मनुओ के बाद सातवे मनु हुए जिनके पिता का नाम विवस्वान था जों दक्ष और अदिति से उत्पन्न हुए थे | विवस्वान के पुत्र होने के कारण मनु को वैवस्वत मनु भी कहा गया है | मनु के दस पुत्र हुए, जिनके नाम इक्ष्वाकु, मृग, घृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, प्रांशु, नाभाग, दिष्ट, करूण और प्रषघ्र थे |
मनु के इन्ही पुत्रों और उनके वंशजों ने न केवल भारत मे, वरन् समस्त विश्व मे अपना राज्य स्थापित किया | मनु की हि वंश परंपरा संताने एक स्थान से दूसरे स्थान पर गई और समस्त विश्व मे फैल गई | उनके अनेक वंश भिन्न भिन्न राजवंशों के नाम से प्रसिद्ध हुए | मनु के ज्येष्ट पुत्र इक्ष्वाकु अयोध्या के सिहासन पर बैठे और उनसे सूर्यवंश की उत्पत्ती हुई मानी जाती है |
Suryavansh description
By churning the ocean in the form of scriptures it is proved that in ancient times only two great dynasties ruled. The names of these two dynasties are Suryavansh and Chandravansh, in Ramayana, Mahabharata and Puranas etc. and they also got fame by the name of Suryavanshi, Chandravanshi.
Today, if we look at them from a macro perspective, it becomes clear that in the Ramayana, Mahabharata etc., there are serial Kursinama of Suryavansh and Chandravansh, there is an illusion that those genealogies are contradictory to each other. For example, in some Puranas Pururava has five sons, in some there is description of eight of his sons and in some there is description of seven.
According to the Puranas, after six Manus from Swayambhuvamanu to Chaksun, there was the seventh Manu whose father’s name was Vivasvan, who was born from Daksh and Aditi. Due to being the son of Vivasvan, Manu is also called Vaivaswat Manu. Manu had ten sons, whose names were Ikshvaku, Mriga, Ghrishta, Sharyati, Narishyant, Pranshu, Nabhag, Dishta, Karun and Prasaghra.
These sons of Manu and their descendants established their kingdom not only in India but in the entire world. Manu’s lineage passed from one place to another and spread throughout the world. Many of his descendants became famous under the names of different dynasties. Manu’s eldest son Ikshvaku sat on the throne of Ayodhya and the Suryavansh is believed to have originated from him.
राजवंशों का वर्णन (चंद्रवंश)
सूर्यवंश व चंद्रवंश मे परस्पर अविच्छिन्न संबंध है | इसमे संदेह नहीं की पुराण और इतिहासों के देखने से पता चलता है की वैवस्वत मनु की पुत्री इला से चंद्रमा का संबंध हुआ जिससे बुध की उत्पत्ती हुई | किसी किसी पुराण का मत है की इला, बुध से ब्याही गई और बुध का जन्म बृहस्पति की स्त्री से चंद्रमा के संसर्ग के पश्चात हुआ था | इसमे संदेह करना व्यर्थ प्रतीत होता है |
पुराणों के अवलोकन करने से मालूम होता है की सूर्यवंश की राजधानी जैसे अयोध्या थी, उसी तरह चंद्रवंश की राजधानी इला के नाम से प्रसिद्ध शशीपुर पट्टन-झूंसी या इलाहाबाद थी | इसी वंश के प्रख्यात राजा हस्ति के नाम पर कालांतर मे हस्तिनापुर (दिल्ली) बसा | पुन: इस वंश मे कुरु के नाम पर कुरुक्षेत्र प्रसिद्ध हुआ ; जइस स्थान मे सबसे बड़ा युद्ध महाभारत हुआ था |
फिर इस वंश मे काश्य राजा के नाम से वाराणासी शहर से बदलकर काशीपुरी प्रसिद्ध हुई, तद्पश्यात इस वंश मे मगध का राजा शिशुपाल प्रसिद्ध और बलवान हुआ, जिसको स्वयं श्रीकृष्णचंद्र जी ने सुदर्शन चक्र से मारा था | पुन: इस वंश मे प्रसिद्ध काशीपुरी के राजा दिवोदास महाधर्मात्मा हुए जिन्हे गर्हवर की उपाधि मिली थी जिनके वंशज गर्हवार (गहरवार) क्षत्रिय कहलाए |
पुन: राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला से राजा भरत की उत्पत्ति हुई जिनके नाम पर संसार का सिरमौर यह प्राचीन भारतवर्ष प्रसिद्ध है | इस बात को मानने के लिए सर्व देशवासी तैयार है |
Chandravansh discription
There is an inseparable relationship between Suryavansh and Chandravansh. There is no doubt that looking at the Puranas and histories, it is known that the Moon had a relationship with Ila, the daughter of Vaivaswat Manu, which led to the origin of Mercury. Some Puranas believe that Ila was married to Mercury and Mercury was born after the union of Moon with Jupiter’s wife. It seems futile to doubt this.
By perusing the Puranas, it is known that just as the capital of Suryavansh was Ayodhya, similarly the capital of Chandravansh was Shashipur Pattan-Jhunsi or Allahabad, famous by the name of Ila. Later, Hastinapur (Delhi) was established in the name of the famous king Hasti of this dynasty. Again, in this dynasty, Kurukshetra became famous in the name of Kuru; The place where the biggest war Mahabharata took place.
Then in this dynasty, Kashipuri became famous by changing the name of Kashya Raja from the city of Varanasi, then in this dynasty, King Shishupala of Magadha became famous and powerful, who was killed by Shri Krishnachandra ji himself with Sudarshan Chakra. Again, in this dynasty, the famous King Divodas of Kashipuri was a Mahadharmatma who received the title of Garhvar, whose descendants were called Garhwar (Gaharwar) Kshatriyas.
Again, King Bharat was born from Shakuntala, wife of King Dushyant, in whose name this ancient India, the head of the world, is famous. All the countrymen are ready to accept this.
राजवंशों का वर्णन (अग्निवंश)
सूर्य और चंद्रमा से जिस प्रकार सूर्य और चंद्रवंश उत्पन्न हुए है, वैसे ही अग्नि से अग्निवंश उत्पन्न हुआ है | इनकी उत्पत्ति के संबंध मे भिन्न भिन्न प्रकार की बाते कही जाती है जिनमे मुख्य भविष्यपुराण तथा चंद्रवरदाई कृत रासो ग्रंथ के कथानक है | इन दोनों का कुछ प्रमाण सहित उल्लेख यहाँ किया जाता है –
तब सुरिण वासिष्ठ, कुंड रोचन रचिता मह |
धरिय ध्यान यज्ञ होम, मध्य बंदी सुरसा मह ||
तब प्रकट्यो प्रतिहार, राज तिन ठोर सुधारिय |
पुनि प्रकट्यो चालुक्य, ब्रह्मचारी व्रत धारिय ||
पंवार प्रगट्यो वीरवर, कत्थो रीष्य परमान धन |
त्रय पुरुष जुद्ध किनो अतुल, महाष्यस षुद्दंत तन ||
(रासो ग्रंथ से)
श्लोक-
एतस्मिन्नेव कालेतु कान्यकुब्जो द्विजोंत्तम |
अंर्बुदे शिखरं प्राप्यं ब्रह्म होममथा कारोत ||45||
वेदमंत्र प्रभावाच्च जाताश्चत्वार क्षत्रिय: |
प्रमरस्सामवेदीय चपुहानिर्यजुर्विद: ||46||
त्रिवेदी च तथा शुक्लो धवो स परिहाक: |
एरावत कुले जातान्गजानांरुत्य ते पृथक ||47||
अशोकं स्ववंश चक्रस्वर्वे बौद्धा विनाशिता: |
चर्तुलक्षा: स्मृता बौद्धा दिव्य शस्त्रै: प्रहारिता ||48||
अवन्ते प्रमरो भूश्शंतुर्योंजन विस्तृताय |
अवन्ती नाम पुरीमध्यास्य सुखितो भवत् ||49||
(पु.प्र.प्र.३ अ ६)
चित्रकूट गिरेदेशे परिहारी महीपति: |
कलिन्जरपुरे रम्ये मक्रोशायतनस्मृतम् ||१||
अध्यास्य ब्रह्महन्तास सुखितोभवदर्जित: |
राजपुत्राख्यदेशे च चपुहानि महीपति: ||२||
अजमेरपुरं रम्यं विधिशोभासमन्वितम् |
चातुर्वण्र्ययुत: दिव्य मध्यास्य सुखितोभवत् ||३||
शुक्लो नाम महीपाल गत आनर्त्तमंडले |
द्वारका नाम नगरी मध्यास्य सुखितोभवत् ||४||
(उ. भ. पु. प्र. प्र. ३ अ ७ )
Agnivansh discription
Just as Surya and Chandravansha were born from Sun and Moon, similarly Agnivansha was born from Agni. Various types of things are said regarding their origin, the main ones being the stories of Bhavishyapuran and Raso Granth written by Chandravardai. Both of these are mentioned here with some evidence –
Then Surin Vasistha, Kund Rochan Rachita Mah |
Dhariya Dhyan Yagya Homa, Madhya Bandi Sursa Mah ||
Then Pratyatyo Pratihar, Raj Tin Thor Sudhariya |
Puni Pratyatyo Chalukya, Brahmachari Vrat Dhariya ||
Panvar Pragatyo Veervar, Kattho Rishya Parman Dhan |
Tray Purush Judd Kino Atul, Mahashyas Shuddant Tan ||
(from Raso Granth)
Shlok:-
Atsminnev Kaletu Kanyakubjo Dvijontam |
Anrbude Shikharam Prapyam Brahma Homamatha Karot ||45||
Veda Mantra Prabhavaccha Jataschchatvar Kshatriya: |
Pramrassamvediya Chapuhaniryajurvidah ||46||
Trivedi cha tatha shukla dhavo sa parihakah |
eravat kule jaatangajananarutya te avidah ||47||
ashokam svavansh chakrasvarve bouddha vinashitah |
chartulaksha: smrita bouddha divine shastrai: praharita ||48||
avante pramro bhushshanturyonjan vasthaaya |
avanti naam purimadhyasya sukhito bhavat | | 49 ||
Chitrakoot Giredesh Parihari Mahipati: |
Kalinjarpure Ramye Makroshaytanasmritam ||1||
Adhyasya Brahmahantas Sukhitobhavdarjitah |
Rajputrakhyadeshe cha chapuhani mahipati: ||2||
Ajmerpuram Ramyam Vidhisobhasamanvitam |
Chaturvtrayut: Divya Madhyasya Sukhitobhavat ||3||
Shuklo Naam Mahipal Gat Anartamandale.
Name city of Dwarka Madhyasya Sukhitobhavat ||4||
राजवंशों का वर्णन (भाषा) :
कहते है जब भारत मे महाराजा अशोक के समय (२००० वर्ष हुए) वैदिक धर्म का सर्वनाश होने लगा था और देशों मे बौद्धों के कारण प्रजा मे हाहाकार मची थी | ठीक उसी समय आबू पहाड़ पर एक कान्यकुब्ज ब्राह्मण ने वेदविधि से अग्निकुंड तैयार कर वैदिक मंत्रों से हवनकुंड मे ब्रह्म होम नामक यज्ञ किया था, जिसके प्रभाव से उस कुंड से चार आहुतियों द्वारा क्रम से प्रमार, चापुहानि, परिहार और शुकलांगी क्षत्रिय राजा उत्पन्न हुए | जिसमे प्रमार सामवेदी, चापुहानि यजुर्वेदी, परिहार अर्थवेदी और शूकलांगी त्रिवेदी हुए |
इसके बाद ऐरावत हाथी पर चारों वीरगण सवार हो महाराजा अशोक के पास जाकर इनको अपने वश मे किया और चार लाख बौद्धों का अपने दिव्य अस्त्रों से संहार किया, और राजा प्रमार ने चार योजन विस्तृत अंबावती नगर की प्रतिष्ठा की और उसमे आप रहने लगे |
परिहार राजा ने चित्रकूट गिरी पर कालींजर नामक रमणीक स्थान मे अपना निवास स्थापित किया | इसी प्रकार राजा चापुहानि ने राजपूताना प्रदेश मे, अजमेर नामक स्थान मे अपनी राजधानी स्थापित की और शूकलांगी राजा ने आनर्तमण्डल की द्वारका नगरी मे अपनी राजधानी की और वही रहने लगे |
Language :
It is said that when in India at the time of Maharaja Ashoka (2000 years ago) the Vedic religion was getting destroyed and people were in panic due to Buddhism in the country. At that very time on Mount Abu a Kanyakubj Brahmin had prepared a Fire Pit as per Vedic rituals and performed a Yajna called Brahma Hom in the Hawan Pit with Vedic mantras, due to the effect of which from that Pit through four offerings Kshatriya kings named Pramar, Chapuhani, Parihar and Shuklangii were born respectively. In which Pramar was Samavedi, Chapuhani was Yajurvedi, Parihar was Arthvedi and Shuklangii was Trivedi.
After this, the four brave men rode on the Airavat elephant and went to King Ashoka and brought him under their control and killed four lakh Buddhists with their divine weapons. King Pramar established the four yojanas wide Ambavathi city and started living in it.
The Parihar king established his residence in the beautiful place called Kalinjar on Chitrakoot Giri. Similarly, king Chapuhani established his capital in a place called Ajmer in Rajputana region and the Shuklangi king made his capital in the city of Dwarka in Anartmandal and started living there.
कुल राजवंशों का वर्णन :
इस प्रकार उक्त वर्णित क्षत्रिय राजवंश ३६ कुलो मे समाहित हुए | कालान्तर मे भारी उलट-फेर के अनुसार इन्ही सूर्यवंश-चंद्रवंश एवं अग्निवनक्ष से कई उपवंशों की उत्पत्ति हुई है |
क्षत्रियों के वैदिक नाम ‘राजन्य’ वा ‘राजन’ ही पुरातन काल से क्षत्रिय कहलाए है |
‘ब्राह्मणोंस्य मुखमासीद्धाहू राजन्य: कृता’
राज शब्द संस्कृत के ‘राट’ शब्द से बना है | राट व राजन दोनों ही ‘राजदीप्तो’ धातु के प्रयोग है | जों देदीप्यमान सूर्यवत तेजस्वी होकर अंधकार का नाश करे, वही राज व राजा कहलाता है | राजन्य वर्ग (क्षत्रियों) मे मुख्य तीन भेद है –
राजपुत्र = राजा का पुत्र अथवा राजकुमार
पृथ्वीपुत्र = कास्तकार
रंजकपुत्र = जागीदार
क्षत्रिय शब्द उस वर्ग विशेष के लिए भी प्रयोग किया जाता है जों राष्ट्र रक्षा हेतु, राजा के रूप मे शासन का संचालन करते थे | समयानुसार राष्ट्र का विघटन राज्यों के रूप मे हुआ | तभी से राज्यों के अधिनायक राजा के नाम से प्रचलित हुए | क्षत्रिय राजवंश के लोग राजपूत (राजा का पुत्र) कहलाने लगे और धीरे धीरे राजपूत नाम क्षत्रियवंश के लोगों के लिए प्रचलित हुआ और राजपूतों का वर्गीकरण विभिन्न नामों से हुआ |
कोइ भी राजा हुआ, उसकी संतान का नाम राजपुत्र या राजकुमार होता था, जिसमे सबसे बड़ा पुत्र शासक होता था | वह सभी व्यवस्थाओ, न्याय व्यवस्था, कर – व्यवस्था आदि सम्मान करने का पूर्ण अधिकारी होता था ताकि जनता उसके शासनकाल मे सुख – शांति से रह सके | यही राजा का उतराधिकारी होता था | उसकी वंशावली भी वही होती थी, जैसे चौहान, सीसोदिया, राठोर आदि | राजा के संबंध भी राज – परिवारों मे होते थे, उन्ही के साथ मेलजोल, मित्रता, रिश्तेदारी होती थी |
Total Dynasty :
Thus, the above mentioned Kshatriya dynasties merged into 36 clans. With the passage of time, many sub-dynasties originated from these Suryavansh-Chandravansh and Agnivanaksha due to heavy changes.
The Vedic names of Kshatriyas, ‘Rajanya’ or ‘Rajan’, have been called Kshatriyas since ancient times.
‘Brahmanosya Mukhamasiddhahu Rajanya: Krita’
The word ‘Raj’ is derived from the Sanskrit word ‘Raat’. Both ‘Raat’ and ‘Rajan’ are the uses of the metal ‘Rajdeepto’. The one who shines brightly like the Sun and destroys darkness is called Raj or Raja. There are three main divisions in the Rajanya class (Kshatriyas) –
Rajputra = King’s son or prince
Prithviputra = Farmer
Ranjakputra = Jagirdar
The word Kshatriya is also used for that particular class who used to run the government as a king for the protection of the nation. With time, the nation was divided into states. Since then, the rulers of states were known as kings. People of Kshatriya dynasty were called Rajput (son of king) and gradually the name Rajput became popular for the people of Kshatriya dynasty and Rajputs were classified by different names.
Whoever became a king, his child was called a prince or a prince, in which the eldest son was the ruler. He had full authority to respect all the systems, justice system, tax system etc. so that the people could live peacefully during his reign. He was the successor of the king. His lineage was also the same, like Chauhan, Sisodia, Rathore etc. The king also had relations with the royal families, he had relations, friendship, kinship with them.
निष्कर्ष :
यदि एक राजा के चार संताने हुई तो एक शासक हो गया, बाकी तीन क्या होते थे ? क्या उनके संबंध भी राज परिवार मे होते थे ? तो यही देखने को मिलता है की उनके संबंध राज परिवारों मे न न होकर उनके समकक्ष परिवारों मे होते थे | ऐसे परिवारों का वंश विशेष का नाम न देकर राज्य मे से थोड़ी सी जागीर उन्हे दी जाती थी जिससे अपना तथा अपने परिवार का भरण – पोषण करते थे |
समय के परिवर्तन के अनूरूप उनका रहन – सहन, और सामाजिक एवं आर्थिक स्तिथि भी बदलती रहती थी और वह अपने को राज परिवारों से भिन्न मानने लगते थे | इस प्रकार राजपूतों की भिन्न – भिन्न जातियाँ अपने पूर्वजों के नाम पर प्रचलित हुई | जैसे चूड़ा की संतान चूड़ावत, राणा की संतान राणावत, कुम्भा की संतान कुंभावत, मानावत, शेखावत आदि – आदि और यह जाती विशेष बन गई | समयानुसार धर्म – कर्म, स्थान आदि के नाम से गोत्र प्रचलित हुए, और आपस मे चार गोत्र बचाकर विवाह संबंध करने लगे |
Conclusion :
If a king had four children, one became a ruler, what were the other three? Were they also related to the royal family? So, it is seen that they were not related to the royal families but to families of their equals. Such families were not given the name of a special clan but were given a small estate from the kingdom with which they supported themselves and their families.
With the change of time, their lifestyle, social and economic status also kept changing and they started considering themselves different from the royal families. In this way, different castes of Rajputs became popular on the name of their ancestors. Like Chuda’s children were Chudawat, Rana’s children were Ranaawat, Kumbha’s children were Kumbhawat, Manawat, Shekhawat etc. and these became special castes. With time, gotras became popular in the name of religion, work, place etc., and people started marrying each other by keeping four gotras among themselves.